पुरानी महक
अस्पताल में लगी कुर्सियों में बैठी मैं अपनी बोरियत दूर करने मोबाइल में खुद को व्यस्त कर रही थी मेरे सामने लगी कुर्सियों पर दुसरी ओर दो मध्यम वर्गीय औरते चुप बैठी है शायद उनका कोई अपना अस्पताल में आया हो तभी डाक्टर आपरेशन थियेटर से निकलकर अपने कैबिन में बैठते ही अपने कम्पांउडर को बुलाती हैं और कुछ सीमित शब्दों में कहती हैं। कम्पाउंडर बाहर निकालकर मेरी तरफ आता है और सहसा उन औरतों की तरफ मुड़कर धीमें स्वर में कहता हैं – “बेटी आई हैं ” ये शब्द सुनते ही मेरे कानो में मिश्री सी घुल गई,एक नयी जिंदगी का आगाज़ ,एक परिवार के नये सदस्य का आगमन, औरत के जीवन का सबसे बड़ा सुख!! इन विचारों के रस में डुबते डूबते ही मेरी नजर उन दोनों औरतो पर पड़ी। लेकिन यह क्या! चेहरे में हर्ष की हल्की सी भी तरंग नहीं, अफसोस के भाव माथे पर सलवट की तरह फैलते हुए जैसे बहुत बड़ा बोझ आ चुका हो। इन मिले जुले भावो की चुप्पी तोड़कर उनमे एक महिला दुसरी से कहती हैं – बेटा होना था ।
नमस्कार ! मेरा नाम समीक्षा गायकवाड़ है और मैं शासकीय उच्च्तर माध्यमिक विद्यालय में विषय रसायन की व्याख्याता हूँ।
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