Pyaare Papa!

चुप थे वो, पर हर लफ्ज़ मेरे लिए सोचते थे,
मुस्कराते कम थे, पर आँसू मेरे लिए रोकते थे।
ना माँ की तरह बाँहों में भरते,
पर छांव बन हर दुख से पहले लड़ते।

कंधे चौड़े नहीं थे बस भार ढोने को,
बल्कि सपनों का वज़न भी उठाया था उन्होंने चुपचाप।
जेबें खाली रहती थीं अक्सर,
पर दिल अमीर था — बस मेरे लिए हर बार।

सुबह की चाय से पहले उनकी चिंता मैं होती थी,
और रात की थकावट में भी उनका सुकून मैं होती थी।
न दिखाया कभी कि थक गए हैं,
न जताया कि कुछ खो गए हैं।

पापा…
वो कभी “मैं तुमसे प्यार करता हूँ” नहीं बोले,
पर जब ठोकर लगी, तो सबसे पहले वहीं मिले।
वो कविता नहीं लिखते,
पर उनकी ज़िन्दगी खुद एक कविता है —
जिसे मैं हर दिन पढ़ती हूँ,
हर साँस में जीती हूँ।

 

-Manisha Sahu 

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