Posts by Dr.Arti Pathak
कल्पना
कल्पनाओं में जीना अच्छा लगता है पर कल्पनाएँ कहाँ साकार होती हैं जितनी खुशी होती है कल्पनाओं में रहकर वास्तिवकता उतनी ही कठोर होती है मन का क्या, उमंग का क्या, तरंग का क्या कहना सोचा तुमको, चाहा तुमको ,पाकर अधूरापन रहा मुझको साकार यह होता तो तुम होते, तुम्हारी नर्म बाँहों का झूला होता…
Read Moreएहसास
वो ज्येष्ठ की दोपहरी गर्मी से तर बतर तन फिर भी साथ तुम्हारे मन बना वृंदावन तपिश थी दावानल हाथ में हाथ आते ही कुहुक उठा मेरा तुम्हारा तन कुछ कहा नहीं कुछ सुना नहीं लस्सियों के क़तार में बस हाथों से छुआ मन रेशमी एहसास के लच्छों में लिपट लिपट कर खिल रहा मेरा…
Read Moreतेरा मेरा साथ
तेरा मेरा साथ यूँ ही बना रहे तू मेरा हाथ थामे दूर खड़ा रहे सागर नदियों-सा साथ है हमारा साथ-साथ बहते रहें मिलने की बात न किया करें। ख़ामोश लम्हें में सारे एहसास गूथे रहें मैं तेरी और तुम मेरी नज़रों में बसे रहें। मोल नहीं शब्दों का हममें जज्बातों में सदा पगे रहें ।
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