कल्पना

कल्पनाओं में जीना अच्छा लगता है पर कल्पनाएँ कहाँ साकार होती हैं जितनी खुशी होती है कल्पनाओं में रहकर वास्तिवकता उतनी ही कठोर होती है मन का क्या, उमंग का क्या, तरंग का क्या कहना सोचा तुमको, चाहा तुमको ,पाकर अधूरापन रहा मुझको साकार यह होता तो तुम होते, तुम्हारी नर्म बाँहों का झूला होता…

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एहसास

वो ज्येष्ठ की दोपहरी गर्मी से तर बतर तन फिर भी साथ तुम्हारे मन बना वृंदावन तपिश थी दावानल हाथ में हाथ आते ही कुहुक उठा मेरा तुम्हारा तन कुछ कहा नहीं कुछ सुना नहीं लस्सियों के क़तार में बस हाथों से छुआ मन रेशमी एहसास के लच्छों में लिपट लिपट कर खिल रहा मेरा…

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तेरा मेरा साथ

तेरा मेरा साथ यूँ ही बना रहे तू मेरा हाथ थामे दूर खड़ा रहे सागर नदियों-सा साथ है हमारा साथ-साथ बहते रहें मिलने की बात न किया करें। ख़ामोश लम्हें में सारे एहसास गूथे रहें मैं तेरी और तुम मेरी नज़रों में बसे रहें। मोल नहीं शब्दों का हममें जज्बातों में सदा पगे रहें ।

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