अनभिज्ञ by K. Pratik
ये कैसा सिलसिला है, किस बात का गिला है।
आंखे क्यूं नम हैं, जो हुआ ही नहीं उस बात का क्यूं गम है…
क्यूं किसी से नज़रे मिला नहीं पाता मैं,क्यूं किसी को अपना दर्द बता नहीं पाता मैं…
क्यूं खुद में खोया रहता हूं तलाश में निकलता नहीं…
मृत जैसा लगता हूं पर लाश मैं बनता नहीं।
अनभिज्ञ खुद की पहचान से हूं , नाम होते भी बेनाम सा हूं।
ठहरता था किसी खूबसूरत जगह अब नज़रें चूराकर निकलता हूं…
रोशनी में मत खोजो मुझे अब,, अंधेरों का आदी हूं रातों में मिलता हूं।
मैं था कभी हंसता – मुस्कुराता, अब कतरे आसुं के बहाया करता हूं।
जहां कभी मैं सामना करता था मुश्किलों तकलीफों का…
अब छोटी सी रुकावट से डरता हूं।
आखिर क्यूं मैं इतना बदल गया…
क्यूं वक्त से पहले ही ढल गया…
बस एक छोटी सी बात हुई…
और मैं इतना मचल गया।
ज़िन्दगी के किताब में हर किस्सा एक अध्याय है,,
जिसे पढ़ कर आगे बढ़ जाना यही ज़िन्दगी से न्याय है…
चाहे गम हो या खुशी पल भर की रहती है…
जीवन बहता नीर है बस बहती रहती है…
फिर क्यूं किसी अध्याय पर रुकना, क्यू आधे सफ़र में ही थकना।
क्यूं रोना, क्यूं गम मनाना।
जो चला गया उसकी ख़ूबसूरत यादें रखना , बाकी भूल जाना।
यही फलसफा है इस तरह ज़िन्दगी चलनी चाहिए, नहीं ख़तम होता किसी के जाने से तुम्हारा सफ़र ये बात तुमको समझनी चाहिए।
Meet K. Pratik a 21 year old final year graduation student with English literature. Writing is his passion now he is trying to make it profession. He has submitted his work in many anthologies and rewarded with best compiler and writer certificate by writing communities and publication houses. He wants to make his own record by submitting 1000 write-ups. “Words are best arsenal that a person got.” He belives in above quote. Trying to make world of his own.
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