एहसास

एहसास

वो ज्येष्ठ की दोपहरी
गर्मी से तर बतर तन
फिर भी साथ तुम्हारे
मन बना वृंदावन
तपिश थी दावानल
हाथ में हाथ आते ही
कुहुक उठा मेरा तुम्हारा तन
कुछ कहा नहीं कुछ सुना नहीं
लस्सियों के क़तार में
बस हाथों से छुआ मन
रेशमी एहसास के लच्छों में
लिपट लिपट कर खिल रहा
मेरा तुम्हारा मन
विंध्य की श्रृंखलाओं में
मखमली एहसासों से
जज़्बातों की सलाई पर
सपनों के स्वेटर बुनता
मेरा तुम्हारा मन
मेरा तुम्हारा मन…..

 

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Arti Pathak

Dr.Arti Pathak

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