बेचने वाला

बेचने वाला

जब वो अपने थके कदमों से आवाज़ लगते अपने अरमानो को पाने के लिए कुछ पैसे बनाता है। मेरा दिल सिर्फ़ उसकी बुलाहट को सुन कर दरवाज़े तक दौड़ जाता है। क्या है जो वो अपने साइकल के चारों ओर लगे बसते में भर के लाया? एक वक्त का खाना, अपने परिवार की बेहतरी, या कुछ अनकहे अरमान। करोना ने हम सब को ऐसे जकड़ कर रखा की रोटी दो वक्त की एक वक्त में सिमट कर रह गई।

चहरे पर लगा वो नक़ाब प्रतीत होता है कि हमें करोना के वार से बचायेगा पर जब बात अपनो की हो, तो इंसान जान जोखिम में भी लगाता हैं। बड़ी बड़ी आँखो से दुनिया को घूरते हुए जब वो आवाज़ देता; डर मख़मली चादर मे उम्मेदों के फूल सजाता । पहले कभी देखा नहीं उसे। शायद इस समय ने, उसे एक चलता फिरता व्यापारी बना दिया।
छोटी उम्र मे घर पर सपने संजोने से ज़्यादा ज़रूरी, ज़िंदगी उसको जलते रास्तों में जीना सिखा गया ।

कभी में पूछती हाल-चाल, कभी उसकी मजबूरी में अपने आँसुओ को भिगोते उसको शाबाशी दे जाती । कभी उसके सामान की तारीफ़ करती, कभी कुछ ख़रीद कर सहियोग का हाथ बढाती।

ज़िंदगी हमें सब सिखाती हैं। प्यार करना, डरना और मरना। यह सीख वो नवयुवक इस महामारी में दिला गया।

Ansulika Paul

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Ansulika Paul

Ansulika Paul

Ansulika Paul is a poet, author, researcher and filmmaker. She is a filmmaker by heart and a film critic by words.

2 Comments

  1. Anonymous on May 16, 2021 at 7:10 pm

    Mai bhi lekhak banna chahta tha mam

  2. Ansulika Paul Ansulika Paul on May 17, 2021 at 5:50 am

    Aab ban jaiye.

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