गरम करे बर आगी बनाये
गरम करे बर आगी बनाये,
अउ जुड करे बर पानी,
बरसे बर बनाये बादर,
भार सहे बर भुइया आगर्,
करम करे बर दिन गढे तै,
सुरताये बर अंधियारी रात,
नर नारी देव गढ डारे,
अउ किसम-किसम के जात्,
कोनो बने हे अन्धरा तोर घर्,
कोनो खोड़वा कोनो कोन्दा,
राम बने हे तोर खेवईया,
नहकावे सब्र के डोंगा,
सुघघर जगत के सिरजईया!!
???
The poem is in the regional language of Chhattisgarh called Chhattisgarhi.
Posted in Chhattisgarhi Lekhan
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Wow ❤️
सुघ्घर कविता
Bahut Sundar..