आज ये कागज खाली है by K. Pratik

आज ये कागज खाली है by K. Pratik

आज ये कागज खाली है

कलम , ज़ज़्बात और दवात सब मीरे रखे उसी जगह हैं अब भी।
मुलाक़ात, बात और भीनी रात भूला नही कुछ, याद है सबकुछ अब भी…
पर क्यों आज चन्द लकीरों के पन्ने भर नही पा रहा…
क्यूँ कुछ लिखने के पहले हर मतर्बा खुद को मैं शून्य पा रहा।
क्या कुछ नही बचा हाथों में मेरे अब, या दिल की सारी बातें लिख डाली हैं…
जो पकड़कर निकला था घर से सुबह, वो कागज़ शाम तलक क्यूँ खाली है।
इश्क़, नफरत, फरेब और लत… सब पे लिखता रहा हूँ मैं।
टूटे दिल, मुस्कुराते लोग और मोहब्बत मुक्कमल कहानी इनकी गढ़ता रहा हूं मैं।
जहाँ जख्म दिलों पे हो मरहम लेकर पहुंच गया…
जहाँ मुस्कुराना मुनासिब समझा, बेफिक्र मुस्कुराता चला गया।
देखे हैं मैंने कई किस्से, कई खुद भी जिया हूँ…
मैं सच्चे इश्क़ पे बेशक लिखता.. पर खुद भी दूर इससे रहा हूँ।
पर देखो न आज फिर एक दफा लिखना चाहा तो, कलम में स्याही नाप तौल कर डाली है…
जो टुकड़ा पड़ा था सोच लिख डालूंगा नज़्म कोई…
पर न जाने क्यूं अब भी कागज खाली है…।

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K Pratik Patnayak

K Pratik Patnayak

he is a writer,poet,storyteller and an engineer. he is 23 years old and have achieved a national award in a national anthology for best debut writer.

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