दुआओं का दूसरा नाम –”बुआ”
वो माँ नहीं, पर ममता में कुछ कम भी नहीं,
हर बात में अपनापन, हर लम्हा कभी थमा नहीं।
न गोद में सुलाया, न लोरी सुनाई,
पर दर्द में सबसे पहले उसकी याद आई।
जब दुनिया ने सवाल किए मेरे सपनों पर,
बुआ की दुआ खड़ी थी मेरी हिम्मत के संग हर डगर।
कभी राखी में, कभी चुपचाप दी एक मुस्कान,
हर त्यौहार में उसके बिना लगता अधूरा सामान।
उसने कभी अधिकार नहीं जताया मुझ पर,
फिर भी सबसे ज़्यादा हक़ उसका ही रहा मेरे घर।
शब्द कम हैं, एहसास गहरे हैं बहुत,
बुआ, तू है तो ज़िंदगी में रंग हैं और रहमतें अनगिनत।
— Manisha Sahu
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